Soniya bhatt

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कृष्ण का मिट्टी खाना



कृष्ण का मिट्टी खाना


        भगवान प्रतिदिन गोपियों के यहाँ माखन चुराने पधारते है। लेकिन आज भगवान का मन खेलने में नहीं है। भगवान बोले की माखन तो बहुत खायो है और अंदर से पेट भी चिकनो हो गयो है। जैसी सफाई मिट्टी(Mitti) से हो सकती है और किसी चीज से नहीं हो सकती। भगवान ने मिट्टी उठा कर मुँह में रख ली। भगवान को मिट्टी खाते हुए श्रीदामा ने देख लिए और बोले की क्यों रे कनवा तूने मिट्टी खाई?

        भगवान के मुँह में मिट्टी थी, बोल तो सकते नही थे तो भगवान ने गर्दन हिला कर ना में जवाब दिया।

        श्रीदामा बोले ये ऐसे नही बतावेगो। श्रीदामा ने बलराम जी को बुला लिए और बलराम ने पूछा- क्यों रे लाला, तेने माटी खाई?

        भगवान ने फिर से ना में गर्दन हिलाकर जवाब दिया। और कहा की इसे आज मैया के पास ले चलो। पहले ये माखन चुरा के खाता था और अब मिट्टी भी खाने लगा है।
        तो दो सखाओ ने भगवान के हस्त कमल पकडे और दो सखाओ ने चरण कमल पकडे। और डंडा डोली(झूला झुलाते हुए) करते हुए लेके माँ के पास गए।
        और मैया के पास जाकर बोले-

        तेरे लाला ने माटी खाई यशोदा सुन माई
        सुनत ही माटी को नाम ब्रजरानी दौड़ी आई
        और पकड़ हरी को हाथ, कैसे तूने माटी खाई?
        तो तुनक तुनक तुतलाय के हूँ बोले श्याम
        मैंने नाही माटी खाई नाहक लगायो नाम।।
        

        भगवान कहते है मैया मैंने माटी नहीं खाई? ये सब सखा झूठ बोल रहे है।

        माँ बोली ,लाला एक संसार में तू ही सचधारी पैदा हुआ है बाकि सब झूठे है? आज मैं तेरे को सीधो कर दूंगी।
        तो माँ हाथ में एक लकड़ी लेकर आई और भगवान को डरने लगी। जब भगवान ने माँ के हाथो में लकड़ी देखि तो झर-झर भगवान की आँखों से आंसू टपकने लगे।

     (कृष्णा ऊखल बंधन लीला)

        राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से पूछा- गुरुदेव, जिनकी एक भृकुटि टेढ़ी हो जाये तो काल भी डर जाता है। लेकिन आज माँ के हाथ में लकड़ी देख कर भगवान की आँखों से आंसू आ रहे है। क्यों ?

     (नन्द बाबा और यशोदा एक परिचय)

        ये नन्द और यशोदा कोन है? जिनको भगवान ने इतना बड़ा अधिकार दे दिया?
        शुकदेव जी कहते है परीक्षित, पूर्व जन्म में ये द्रोण नाम के वसु थे और इनकी पत्नी का नाम था धरा । ये निःसंतान थे। और इन्होने भगवान की तपस्या की। भगवान प्रकट हो गए और बोले की आप वार मांगिये।
        तो इन्होने कहा भगवान, आप हमे ये वरदान दीजिये की हमे आपकी बाल लीला का दर्शन हो। हमे इस जन्म में सब कुछ मिला लेकिन हमारे संतान नही हुई। तो हम आपकी बाल लीला देखना चाहते है।
        भगवान बोले की, कृष्णावतार में आप मेरी बाल लीला का दर्शन करोगे।
        ये द्रोण, नन्द बाबा बने और उनकी पत्नी धरा ही यशोदा है। दोनों को भगवान अपनी बाल लीला का दर्शन करवा रहे है।

        माँ पूछ रही है तेने माटी खाई?
        भगवान कहते है नही खाई मैया , मैंने माटी नाही खाई।
        हाथ में लकड़ी लेके माँ डरा रही है। भगवान ने कहा यदि मैया तेरे को मो पर विश्वास नही है तो मेरा मुख देख ले। साँच को आंच कहाँ
        तो छोटो सो मुखारविंद कृष्ण हूँ ने फाड़ दियो।

        भगवान ने अपना छोटा सा मुँह खोला।

   (माँ यशोदा को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का दर्शन )


        और माँ मुँह में झांक-कर देखती है तो आज सारे ब्रह्माण्ड का दर्शन माँ को हो रहा है। केवल ब्रह्माण्ड ही नही गोकुल और नन्द भवन का दर्शन कर रही है। और नन्द भवन में कृष्णा और स्वयं का दर्शन भी माँ को हो रहा है।
        अब माँ बोली की मेरे लाला के मुँह में अलाय-बलाय कहाँ से आ गई?
        थर थर डर के माँ कांपने लगी।
        भगवान समझ गए आज माँ ने मेरे ऐश्वर्ये का दर्शन कर लिया है कहीं ऐसा ना हो की माँ के अंदर से मेरे लिए प्रेम समाप्त ना हो जाये। और मैं तो ब्रजवासियों के बीच प्रेम लीला करने आया हूँ।
        क्योंकि जहाँ ऐश्वर्ये है वहां प्रेम नही है। ऐसा सोचकर भगवान मंद मंद मुस्कराने लगे। भागवत में भगवान की हंसी को माया कहा है। भगवान ने माया का माँ पर प्रभाव डाला और जब थोड़ी देर में माँ ने आँखे खोली।
        तो भगवान अपनी माँ से पूछने लगे मैया तेने हमारे मुख में माटी देखि?

        माँ बोली की सब जग झूठो केवल मेरो लाला सांचो। भगवान की मुस्कराहट से माँ सब कुछ भूल गई।

        इस प्रकार से प्रभु ने मृतिका भक्षण लीला की है









       

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